उस कमज़र्फ़ पाकिस्तान के लिए जो धोखे के सिवाय कुछ नहीं …
खामोशी हमारी फितरत में थी
तभी तो बरसो निभ गई फरेबियों से
अगर मुंह में हमारे भी अंगार होते
तो सोचो कितना बवाल होता…..
सीधी राह चलकर मंजिल तक पहुचना चाहते थे
जो राह टेढ़ी पकड़ते हम भी
तो सोचो कितना बवाल होता….
हम तो अच्छे थे पर ज़माने ने खराब कर दिया,
कहीं हम सच में खराब होते
तो सोचो कितना बवाल होता…..
मिटटी के प्यार ने सब कुछ सहना सीखा दिया
जो ये मिटटी खून में ना होती
तो सोचो कितना बवाल होता…..
समझ के अपना आँगन में दी थी थोड़ी सी जगह
जो ये कोना ना दिया होता
तो आज ये बवाल ना होता……