छल,घात,कपट की भुक्ति से
माँ भारती को बचाना होगा
असुर जनों से मुक्ति देने
हे राम! तुम्हे आना होगा……..
निर्दयी कैकयी की इच्छा का
मान रखा वन में जाकर
ऋषि मुनि जन भी कृतज्ञ हुए
अपने संग में तुमको पाकर
ना जाने कितनी कैकयी अब
बैठी सिंघासन पर चढ़कर
अब भरत भी देखो बदल गए
घात कर रहे छुप छुपकर
ऐसी कैकयी औऱ भरतों से
अब छुटकारा पाना होगा
असुर जनों से मुक्ति देने
रघुपति !तुमको आना होगा…….
सोने के मृग की छवि पाकर
माता सीता भी मुग्ध हुई
निष्पाप सरल भोली मैया
रावण के छल से त्रस्त हुई
गली गली विधर्मी मारीच
भेस बदल कर घूम रहे
माथे पर झूठा तिलक लगा
भोली बाला को लूट रहे
सरल सुलक्षण नारी को
बहरूपियों से बचाना होगा
असुर जनों से मुक्ति देने
दसरथ नंदन !आना होगा…….
रावण की लंका ध्वस्त हुई
माँ धरा पाप से मुक्त हुई
कितने दुष्टों का नाश किया
मानव जन पर उपकार किया
वो एक था रावण दस सिर का
यहां सहस्त्र रावण दस सिर के
सहस्त्र रावणों का मर्दन करने
रघुनंदन !तुम्हे आना होगा …….
जहां सत्य धर्म का भान हो
गंगा सा निर्मल ज्ञान हो
कोई भूख प्यास से मरे नही
खून की नदियां बहे नही
जहां राम बसें सबके अंदर
ऐसे युग का सृजन करने
अब अवधपति आना होगा
मेरे राम! तुम्हे आना होगा
हे राम! तुम्हे आना होगा …..