हमारे पुराण बहुत से शिक्षाप्रद कहानियों व घटनाओ से भरे हुए हैं किंतु एक कहानी ऐसी है जिसे शायद ही कुछ लोगो ने पढ़ा हो..
और वो कहानी है #श्रीकृष्ण व उनके पुत्र *साम्बा की।
हम श्री कृष्ण के ना जाने कितने रूपों से अवगत हैं किंतु एक पिता के रूप में श्री कृष्ण का दुःख हम जैसे कुछ साधारण मानवों जैसा ही था।
साम्बा का जन्म श्री कृष्ण व जाम्बवती के योग से हुआ था।साम्बा प्रारम्भ से ही वेश बदलने में माहिर था व अपनी इस कला से वो बहुत से लोगो को ठगता था
उसने अपने पिता की कुछ छोटी रानियों को कृष्ण का भेष बदलकर ठगा और उससे श्री कृष्ण ने उससे नाराज़ होकर श्राप दिया जिससे उसे चर्म रोग हो गया व अब कृष्ण की रानियां उसे कृष्ण के भेष में देखकर भी पहचानने लगी।
साम्बा ने इस रोग से मुक्ति पाने के लिए #सूर्य की आराधना की व सूर्य मंदिरों का निर्माण कराया।भारत मे समस्त सूर्य मंदिर #ओडिसा का #कोणार्क मंदिर या #गुजरात का #मोधेरा मंदिर हो या #कश्मीर का #मार्कण्ड मंदिर हो सभी साम्बा को समर्पित कर बने हैं ।
साम्बा ने #दुर्योधन की पुत्री का हरण करने का प्रयास किया जिससे #कौरवों व #यादवों के बीच युद्ध छिड़ गया लेकिन श्री कृष्ण के बड़े भाई #बलराम द्वारा बीचबचाव करने से विवाह संपन्न हुआ ।
इसी कड़ी में एक बार साम्बा ने एक गर्भवती स्त्री का रूप धारण कर #द्वारका में आये #ऋषियों को भी ठगने का प्रयास किया जिससे ऋषि मुनि क्रोधित हो गए और उन्होंने साम्बा को श्राप दिया की वो एक लोहे की गदा समान पुत्र को जन्म देगा जो #यदुकुल के सर्वनाश का कारण बनेगा।
ये कहानी मैंने आपको #पुराणों की जानकारी देने के लिए नही बताई अपितु
यहाँ सवाल ये उठता है की कृष्ण जैसे पिता के होते हुए भी साम्बा इतना उत्तदण्ड व हठी क्यों हुआ? साम्बा के विचार व व्यक्तित्व पिता के जैसे क्यों नही थे ?
क्या साम्बा का ये हाल अपने पिता की लापरवाही से हुआ था? क्या कौरव पांडवो की लड़ाई के बीच साम्बा कही पीछे छूट गया था?अर्जुन को ज्ञान देते देते श्री कृष्ण साम्बा को राह दिखाना भूल गए?
आज भौतिकता की लड़ाई में हम क्या पीछे छोड़ते जा रहे हैं ,जिन बच्चों के भविष्य के लिए हम दिन रात कमाने में लगे रहते है लेकिन उन्हें हमारे समय या साथ की कितनी जरूरत है हम जान भी नही पाते!!
नौकरी,वर्क लोड, कमाई, स्टेट्स, बैंक बैलेंस उच्च शिक्षा बस इन्ही सब लक्ष्यों को पाने में हम एक बहुमूल्य वस्तु खो देते हैं … समय! वो समय जो जीवन मे कभी वापिस नही आयेगा।
आज इंटरनेट व स्मार्ट फ़ोन के युग मे आफिस व घर के बीच के भेद को खत्म कर दिया है,लोग आफिस में बैठकर घरवालों व दोस्तों से चैट करते हैं व घर जाकर आफिस की ईमेल देखते हैं !!
कुछ लोग इस बात में भी फक्र महसूस करते हैं की काम के आगे वो परिवार का भी बलिदान कर देते हैं ये उनकी कर्मठता है !!
आज ना तो परिवार हंमारी उपलब्धि रह गया है ना बच्चों में अच्छे संस्कार डालना हमारा उद्देश्य!
आज हम परिवार को या तो दायित्व, कर्तव्य या अस्तित्व के उत्पादों के रूप में देखते है या फिर संपार्श्विक क्षति के रूप में ।
हम #गांधी जैसे लोगों को अपना आदर्श मानते हैं की उन्होंने अपने परिवार को देश पर कुर्बान कर दिया किन्तु क्या कभी उन बच्चों से पूछा की वो अपने पिता से क्या चाहते थे ?सारी दुनिया गांधी को पूजती है किंतु उनके बच्चों का कहीं नाम भी नही लिया जाता।उनका पुत्र हरिलाल उच्च शिक्षा के लिये विदेश जाना चाहता था जिससे वो बैरिस्टर बन सके किन्तु गांधी जी ने उसे कभी नही जाने दिया धीरे धीरे अपने पिता का विद्रोह करते करते उसने परिवार से नाता तोड़ लिया। भारत को एक कराने वाले गाँधी जी का अपना परिवार। कितना टूटा हुआ था कोई नही जानता!
अपने पिता को दुख देने के लिए कुछ समय के लिए #हरिलाल मुसलमान बन गया फिर अपनी माँ #कस्तूरबा के कहने से पुनः आर्य समाज ग्रहण किया।
गाँधीजी उसे चरित्रहीन व शराबी मानते थे और उन्होंने अपने एक पत्र में लिखा” मेरे लिए अपने बेटे को सुधारना देश को आज़ाद कराने से कहीं मुश्किल है”
ऐसा क्यों हुआ की गांधी जी जिन्हें महापुरुष समझा जाता है उनका बेटा दुराचारी निकला!!
अक्सर बच्चों को ये अहसास कराया जाता है की इतनी कमरतोड़ मेहनत उनके भविष्य के लिये कर रहे हैं तो क्या अनजाने में हम उन्हें ये नही बता रहे की पैसे का मूल्य भावनाओं से ऊपर है?
फिर बुढ़ापे में हम उन्ही बच्चों से सेवा की उम्मीद करते हैं जिन्हें हमने यह पाठ पढ़ाया था कि पैसा ही सबकुछ है !
हममे से बहुत से कृष्णो के घर मे साम्बा पल रहे हैं या बहुत से गांधी के घर मे हरिलाल बन रहे हैं … ये वो ही बच्चे है जो या तो मातापिता का ध्यान आकर्षित करने के लिए विध्वंसकारी हरकते करते हैं …या फिर मातपिता से दूर छिटकने के लिए… क्योंकि अधिकतर मातपिता को उनकी बात सुनने के लिए वक़्त या धीरज नही होता।
हम विरासत में जो छोड़कर जाएंगे बच्चे वही संजोएँगे।
धन छोड़ेंगे तो धन और संस्कार छोड़ेंगे तो संस्कार !!
हंमारी आज की पीढ़ी में ना जाने कितने ऐसे कृष्ण होंगे जो कौरव पांडव की लड़ाई में साम्बा को भूल चुके हैं और उनसे कई और साम्बा पैदा होंगे । देश व समाज की लड़ाई लड़ने वाले बहुत से गांधी होंगे जो परिवार की लड़ाई में हार चुके हैं।
सच है :-
पूत सपूत तो , क्यों धन संचय
पूत कपूत तो , क्यों धन संचय
✍️रुचि शुक्ला ✍️