असली कैंसर क्या है?
क्या कहीं ऐसा तो नही कि किसान भाइयों को अनजाने में बद दुआएँ मिल रही हों। जो अनाज व सब्जी हम शरीर को ऊर्जा देने के लिए खातें हैं वो कैंसर बनकर हमारे शरीर को खा रही हैं।
हमारे दुःख हमने खुद पैदा किये हैं। पारंपरिक खेती व खाद को त्याग कर हम यूरिया व अन्य रासायनिक पदार्थों का बड़े पैमाने पर खेती में उपयोग करने लगे।
लालच के कारण किसान चौगुनी मात्रा में कीटनाशक दवाओं का उपयोग करते हैं। मौसम से पहले फल तोड़कर हम उसे अकृत्रिम रूप से पकाते हैं।
सब्जियो का आकार व वजन बढ़ाने के लिए उसमे हार्मोन्स का उपयोग करते हैं। यही हार्मोन्स शरीर मे कैंसर पैदा कर रहे हैं। एक ही रात में लौकी का वजन व आकर चार गुना हो जस्ता है। आज टमाटर का साइज संतरे जैसा हो गया है।
सब्जियों को सुंदर दिखाने के लिये उन्हें विषैले रसायनों के घोल में डुबोते हैं।
गायों ले दूध की एक एक बूंद चूसने के लिए उन्हें दिन में दो बार *ऑक्सीटोसिन* का इंजेक्शन लगाते हैं और जब हमारे बच्चे वो दूध पीते हैं तो ये हार्मोन उनके शरीर मे विपरीत असर देते हैं। जिससे बच्चों में छोटी उम्र में puberty हार्मोन्स बढ़ने लगते हैं और उससे उनके शरीर मे कई तरह की बीमारियां बढ़ने लगती हैं।
पनीर में tissue पेपर व साबुन मिलता है। खोये में मिलावट है। चीनी में जानवरों की हड्डियाँ हैं।
तेल में अलसी है। चाय में बुरादा है। गुटके में विषैले रसायन हैं। शर्बत में रंग है। नूडल्स में लेड है। नलों से बोतलों में पानी भरकर मिनरल वाटर के नाम पर बेच रहे हैं। सुनार 22 कैरट में 20 कैरेट देते हैं। लिपस्टिक में मछली का तेल है। सिंदूर में लैड है। बिंदी में सस्ता गोंद है जिससे त्वचा का कैंसर होता है। शैम्पू में कपड़े धोने के साबुन जैसा ही सोडा है जिसे पहले आप बाल धोते हैं फिर उससे होनी वाली डेंड्रफ के लिए दूसरा शैम्पू लेते हैं। गोरेपन की क्रीम में सस्ते ब्लीच हैं जिससे आपकी त्वचा के अंदर की ग्रंथियां नष्ट होती हैं।
टूथपेस्ट में ब्लीच है जिससे आपके दांतों का इनेमल निरंतर नष्ठ हो रहा है।दूध में यूरिया ,साबुन, मैदा,अरारोट है। नमकीन में प्लास्टिक है। प्लास्टिक के चावल हैं। बिरयानी में आवारा जानवरों का गोश्त है। देसी घी में जानवरों की चर्बी है। मिर्च में ईंटों का पाउडर है। धनिये में लीद है। हल्दी में रंग है। मुर्गीयों को अब अंडे देने के लिए मुर्गे से शादी नही करनी पड़ती मुर्गे की जगह इंजेक्शन ने ले ली।
देशी शराब में सड़े फल,सब्जी से लेकर पुराने चप्पल जूते हैं। बल्बों में मरकरी है। पेट्रोल में केरोसिन है। एक दवा से एक बीमारी ठीक होती है तो दूसरी बीमारी शुरू हो जाती है।
टीचर तनख्वाह लेकर भी शाम को कोचिंग में पढ़ाते हैं।सरकारी डॉक्टर घर पर फीस लेते है। पुलिस रिश्वत से कमाती है। अफसर माल कमाते हैं। डॉक्टर आपको किडनी बदलने को कह आपसे नई किडनी के दाम लेते हैं और आपकी अच्छी भली किडनी दूसरे को बेच देते हैं।
सफेदपोश अपराधियों को पनाह देते है। तिलकधारी गायों को काटते हैं। गद्दार भारत मे पाकिस्तान की ज़िन्दाबाद बोलने की कीमत लेते हैं।
बाबा व धर्म गुरु फैक्टरियां चलाते हैं। पत्रकार झूट दिखाते हैं। नेता देश बेचते हैं। लाशों से insurence कमाते हैं। लोग टैक्स बचाते हैं। फर्जी मुकदमे करते हैं।
बीबी हो तो गर्लफ्रैंड ढूँढते हैं। गर्लफ्रैंड हो तो शादी नही करते हैं।
लड़कियां अफ़ेयर एक से करती हैं, घूमती दूसरे के साथ हैं,शादी तीसरे से करती हैं। लड़के दोस्त की गाड़ी को अपना बताकर लड़कियों से झूट बोलते हैं ।
झूट से शादी ब्याह होते हैं। झूट से शान दिखाते हैं। बच्चे कंप्यूटर पर पढ़ने के बहाने सनी लियोनी देखते हैं, डैडी देर रात तक आफिस वर्क के नाम पर दोस्तों के साथ पार्टी करते हैं।मम्मी फ्री होते ही नानी को फ़ोन लगाती हैं और दादी पड़ोस में बहु की बुराई बतियाती है।
अब लोग साईकल सड़क पर नही जिम में 3000 रु देकर चलाते हैं। घर का वर्क बाइयाँ करती हैं और मैडम स्लिम दिखने के लिये 2 घण्टे वर्कआउट करती हैं।
जब गाय पालते थे तो दूध शुद्ध होता था,घी शुद्ध होता था, मिठाई शुद्ध होती थी।खाद शुद्ध होती थी उससे सब्जी व अनाज भी शुद्ध होता था तो तेल भी शुद्ध होता था।जब तक गाय समाज व कृषि से जुड़ी थी हमारे देश मे कैंसर नही था।
फिर डेरी आईं। विदेशी गायें आईं ।लोगों में लालच आया और अपने साथ कैंसर लाया। गाय दूध की जगह कत्लखानों में कटने लगी कैंसर बढ़ने लगा।
ज्यादातर कृषि प्रधान उत्पाद गाय से प्रभावित थे। जहां गाय का गोबर था वहाँ रासायन आये …कैंसर आया।
गोरों की तरह दिखने की चाह में हमे अपनी चमड़ी का रंग चुभने लगा। प्रकृति ने विटामिन D का एक ही स्त्रोत दिया भरपूर धूप हम उससे बचने लगे क्योंकी गोरा दिखना था तो हड्डियों का कैंसर आया।
50 की उम्र में घुटने जवाब देने लगे। 5 लाख में प्लास्टिक के घुटने बिकने लगे।
करीना,कटरीना,प्रियंका अपने बालों पर हर महीने हजारों रु खर्च करती है लेकिन हमारी बालाओं को वो बाल 5 रु के satchet में रेशम जैसे बाल मिलने की बात कहकर खूब उल्लू बनाती हैं। शाहरूख खान हर 6 महीने में प्लास्टिक सर्जरी कराता है लेकिन हमारे नवयुवकों को 50रु की क्रीम में गोरा होने का नुस्खा बताता हैं। पहले जीन्स में मोबाइल की पॉकेट होती थी अब कंडोम रखने की भी स्पेशल पॉकेट आती हैं। यानी पढ़ाई लिखाई छोड़ो सिर्फ इश्क़ मुश्क पर ध्यान दो।
सचिन व धोनी अपने बच्चों को कभी पेप्सी या कोला नही देते लेकिन आपको प्यास बुझाने के लिए कोला पीने को कहते हैं।जिससे डाईबेटिस व आंतें सड़ जाती हैं।
हमारे बाबा लोग भी कुछ कम नही हैं एक अपनी दाड़ी व बाल रंगकर आपको कुदरत का शैम्पू व तेल बेचते हैं। तो दूसरे आपको खुश कैसे रहा जाए वो बताने के लिए 5 दिन के 5000 रु लेते हैं। तीसरे बाबा तो tv स्क्रीन से ही आपको आशीर्वाद दे देते हैं।
बिल्डर एक एकड़ के दाम देकर करोड़ों के घर बेचते हैं। इंसानों के रहने के लिए कबूतर के दड़बों जैसे घर बनवाते हैं। किसान को झांसा देकर खेती की ज़मीन खरीद लेते हैं फिर किसान क्यो मरता है उसके लिये सरकार को लोग कोसते हैं।
मोबाइल कंपनियां एक साल फ्री डाटा देकर दूसरे साल उसपर चौगुनी कीमत वसूल लेती हैं। घरों में आटा कम आता है डाटा ज्यादा।
संगीतकार विदेशी धुनें चोरी करते हैं,फिल्मकार विदेशी कहानियां। देश के बैंकों मे रुपिया बदल जाता है लेकिन विदेशी लॉकरों में डॉलर बढ़ता जाता है।
कांग्रेस वाले बीजेपी को गाली देते हैं, आप वाले कांग्रेस को,माया मुलायम को गाली देती है मुलायम मोदी को.. संसद की कैंटीन में सब 2 रु चाय साथ साथ पीते हैं।
लोग कमल की टोपी पहने घर से निकलते है लेकिन चुपके से हाथ को भी सलाम करते हैं। झाड़ू वाले बैक डोर से कमल वालों के मिलने की तैयारी रखते हैं।
मैडम आप बहुत सटीक लिखती हो।
भारतीय समाज का जो चित्र आपने खींचा है वो बिलकुल सही है और इसके लिए भी हम ही जिम्मेदार हैं लेकिन कम से कम मुझे तो सुधार की कोई उम्मीद नही दिखाई देती है।
जितनी भी समस्याएं हैं वो सब modern बनने के चक्कर में हमने खुद मोल ली हैं, यदि हम अपने सारे काम खुद करना शुरू कर दें जैसा कि पहले लोग करते थे तो 90% समस्याएं अपने आप खत्म हो जाएँगी।
जैसा कि आपने बताया गाय के पालने से ही 50% वस्तुएं शुद्ध मिलेंगी। यदि हम अपना अनाज, अपने मसाले खुद घर पर ही पीस लें तो वे भी हमको शुद्ध ही मिलेंगे फिर आटे, मसालों में मिलावट की गुंजाइश ही खत्म हो जायेगी।
लेकिन बात यहीं तो अटक जाती है। आज किसी महिला को बोलकर देखिये कि वो सुबह जल्दी उठकर अपने परिवार के लिए हाथ की चक्की से गेंहू पीसे या मसाले पीसे तो लिखने की जरूरत ही नही कि आपको क्या जवाब मिलेगा।
महिलाएं figure maintain करने के लिए gym जाने को तैयार हैं लेकिन चक्की चलाने में अपना अपमान समझती हैं।
इसी प्रकार पुरुष भी अपने परिवार की उचित देखभाल के लिए गाय पालना अनपढ़ लोगों का काम मानते हैं।
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वर्मा जी सारी बात सोच पर आकर अटक जाती है सोच का दायरा जितना संकीर्ण होता जा रहा जीवन उतना ही जटिल। इसके ज़िम्मेदार भी हम ही हैं । लेकिन यदि हम थोड़ा थोड़ा प्रयास भी करें तो कुछ बदलाव तो आएगा
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सही कहा आपने
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