पार्किन में गाड़ी में बैठी मैं कुछ पढ़ रही थी तभी खिड़की पर आहट हुई,बाहर एक वृद्ध महिला एक कपड़ा लिए गाड़ी का शीशा पोंछ रही थी।
शक्ल से वो किसी ठीक ठाक घर की लग रही थी।मैंने कहा “अम्मा ये उम्र तुम्हारी काम करने की नही घर बैठ कर सेवा कराने की है”उन्होंने बताया की घर मे बेटा, बहु पोते सभी हैं किंतु सवेरे ही वो उसे घर से निकाल देते हैं, कि मांग कर दिनभर गुज़ारा करे,आत्मसम्मान की वजह से वो भीख नही मांग पाती तो गाड़ी के शीशे पोंछ 2-4 रु कमाने की कोशिश करती है। मैंने उन्हें सम्मान से पास वाले ठेले से चाय पिलाई व समोसा खिलाया। उस माँ के काँपते हाथों में कप देखकर मैं सोच रही थी ये वही बेटा होगा जिसे इसने हर तकलीफ से बचा कर पाला होगा और आज वो इसे एक रोटी नही दे रहा।
ये कोई एक कहानी नही,बहुत सी ऐसी घटनाओं को देखा। समाज के सम्मानित सेवा निवृत्त बुजुर्गों तक का घोर अपमान व उपेक्षा हो रही है।जो आज भी हज़ारों रु पेंशन के घर मे दे रहे हैं और उनके बच्चे उन्हें टूटी कुर्सी की तरह घर के किसी कोने में रख देते हैं।
मेरी माताजी के कुछ पुराने सहयोगियों का हाल देखा। बुजुर्ग महिलाएँ घर का साग सब्जी रिक्शाओं पर व पैदल चलकर लाती है।
जबकि उनके बेटे बहु गाड़ियों में घूमते हैं। इस उम्र में भी वो सारे घर का खाना बनाती हैं। इन बुजुर्गों ने अपनी जीवन भर की कमाई से बेटों को आलीशान कोठियां बना कर दी और अब भी पोते पोतियों की ख्वाइश पूरी करते हैं लेकिन वही बेटा बहु उन्हें 2 रोटी भी इज़्ज़त से नही देते।
एक और बुजुर्ग दंपती हैं जिन्हें उन्ही के बेटे बहु ने घर से निकालकर एक कमरे में सिमट दिया है। उनकी बहू रसोई में घुस कर चाय भी नही बनाने देती मज़बूरन उन्हें टिफ़िन सर्विस लगानी पड़ी। दिल पर पत्थर रखकर उन्होंने अदालत की शरण ली।
अन्य बुजुर्ग महिला जिनकी टांग टूटी हुई है बैसाखी पर चलती हैं आलीशान कोठी के अपने कमरे को रात बन्द के सोती हैं क्योंकी बेटा रोज़ जान से मारने की धमकी देता है, सिर्फ इसलिए,कि वो अपनी पूरी पेंशन उसे नही देती।
एक और दंपती हैं जिनमे से एक को लकवा है और वो अपनी नित्य क्रियाओं तक को भी करने में असमर्थ हैं लेकिन घर का कोई सदस्य उनके कमरे तक मे नही आता। उनका दोनों का खाना भी कमरे के बाहर ही रख दिया जाता है।
ये सब देखकर मुझे ये लिखने पर मजबूर होना पड़ा ” जीते जी जिन्होंने माता पिता को एक रोटी चैन से नही दी उनके श्राद्ध में कुत्ते और कौवे को रोटी खिलाते हैं”
आज समाज मे कुछ बुजुर्गों की स्थिति बहुत दयनीय है ना तो उन्हें वो सम्मान मिल रहा है ना ही सेवा जिसके वो हक़दार हैं। ऐसे में कैसे उनके बच्चे उनका आशीर्वाद पा सकते हैं।
कोरे रिवाज़ों को निभाने से कर्तव्यों की इति नही हो जाती। रिश्तों का कर्ज ना तो दान देने से उतरता है ना ही पंडित को खाना खिलाने से।
माता पिता की आत्मा को उनके जीते जी प्रसन्न रखिये। उन्हें आपके थोड़े से सम्मान व थोड़ी सी सेवा की अपेक्षा है। उनकी इच्छाओं को जीते जी पूरा करिये।
कोई पंडित या जानवर आपके दिए भोजन को उनतक नही पहुंचा पायेगा यदि आपने जीते जी उन्हें कष्ट दिया होगा।
जीते जी उन्हें तीर्थ कराइए ,गंगा में प्रवाहित की अस्थियों से उनकी अतृप्त इच्छा नही पूरी होगी।
जीते जी उन्हें अच्छे व साफ कपड़े दीजिये मरणोपरांत दान दिये कपड़ों से उनकी आत्मा नही प्रसन्न होगी।
जीते जी उन्हें अच्छा भोजन कराइये वरना चाहे लाखो की दावत करिये उनकी आत्मा तो भूखी है दुनिया से गई होगी।
जीते जी समय निकाल कर उनके पास कुछ देर बैठिये। अपने बच्चों को बुजुर्गों से स्नेह करना सिखाइये वरना चाहे कितने कंबल दान करिये वो मुड़कर आपको आशीर्वाद देने नही आयेंगे।
जिन्हें माता पिता ,बाबा दादी व बुजुर्गों का आशीर्वाद नही मिलता वो चाहे कितनी दौलत कमा लें दुःख उनका पीछा नही छोड़ते।
सामाजिक रूढ़ियों से ज्यादा पारिवारिक कर्तव्य निभाइये और कोशिश करिये आपके माँ बाप जीते जी अपने सारे आशीर्वाद आपके लिए छोड़ जायें।
उनके छोड़े हुए धन व जायदाद से ज्यादा उनका छोड़ा हुआ आशीर्वाद आपके काम आयेगा।