देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोsखिलस्य।
प्रसीद विश्वेतरि पाहि विश्वं त्वमीश्चरी देवी चराचरस्य।
देवी मां की उपासना व पूजा के ये 9 दिन बहुत पावन होते हैं, इसमें पूजापाठ के साथ साथ इच्छाओं के त्याग का भी बहुत महत्व है। यदि शरीर व स्वास्थ्य साथ दे तो सूक्ष्म व सादा भोजन करना चाहिए।
सर्व मंगलं मांगल्ये शिवे सर्वाथ साधिके।
शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥
लेकिन यहाँ भोजन के त्याग से ज्यादा महत्वपूर्ण है बुरे विचारों व बुरे कर्मों का त्याग करना। हमारे मन मे जो बुराई रुपी राक्षस छुपे हैं माँ भगवती उनका नाश करे। कोशिश करके अपनी बुराइयों पर विजय पायें।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:।
स्वस्थै स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।।
द्रारिद्र दु:ख भयहारिणि का त्वदन्या। सर्वोपकारकारणाय सदाह्यद्र्रचिता।।
आजकल व्यस्तता सबके जीवन मे अत्यधिक हैं फिर भी हो सके तो समय निकालकर चंडी पाठ या सप्तशती का पाठ करना चाहिये। प्रतिदिन पूरा पाठ ना हो सके तो थोड़ा थोड़ा करके पढ़ना चाहिए।
बहुत से लोग सिर्फ शब्दों पर जाते हैं आपको आश्चर्य होगा की उसमे कितने गूढ़ संदेश छुपे हैं।
यदि सिर्फ कवच का भी पाठ करें तो आप ज्यादा postive महसूस करेंगे।
क्योंकी कवच पाठ में हम अपने शरीर की बाहरी-आंतरिक अंगों की रक्षा और स्वस्थ रहने की बात करते हैं। कवच पाठ में एक-एक करके हम उन सभी अंगों का नाम ये श्रद्धा रखते हुए लेते हैं कि देवी दुर्गा उन अंगों को स्वस्थ रखते हुए हमें सुरक्षा कवच प्रदान करती हैं। इस तरह की पॉजिटिव सोच को जब हम किसी भी ईश्वरीय शक्ति से जोड़ते हैं तो वे बातें हमारे मन में और भी ज्यादा मजबूती से जड़ें जमा लेती हैं।
कुछ कुतर्की लोग उसमे से कुछ अंशो को अश्लील करार देते है जिसमे देवी के रूप की व्यख्या की गई है, उन्हें शब्दों के पीछे छुपा रहस्य नही समझ आ सकता। जिन लोगों को मनोहर कहानियां पढ़ने की आदत हो उन्हें देवी में माँ का रूप कैसे नज़र आएगा।
सृष्टिस्थिति विनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि! नमोऽस्तुते॥
जो लोग किसी कारणवश पूजा पाठ या व्रत ना भी कर पाते हों उन्हें भी चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं क्योंकी
“पूत कपूत सुने है पर ना माता सुनी कुमाता”
उनके ऊपर भी देवी मां की कृपा उतनी ही रहेगी बस थोड़ा बुराइयों का बलिदान माँ के चरणों मे कर दें।
धर्म का पालन विचारों में होना ज्यादा जरूरी है बजाय आडंबरों के!!
इस नवरात्री अपने अंदर के राक्षसों का मर्दन करें।
ना बुरा करें ना होने दें।