
कुछ किस्से कुछ कहानियाँ,
ज़िन्दगी भर का रोना
ज़िन्दगी भर की बेईमानियां
★ लड़की की उम्र करीब 23 वर्ष,गोद मे करीब एक साल का बच्चा। दिखने में सुंदर व भोली लेकिन आंखों में सूनापन। कुछ पूछते ही आंखों से टप टप आँसू गिरने लगे। बताया 6 बहिनों में से चौथी संतान थी। सर पर बाप का साया नही। निकट रिश्तेदारों ने उसकी शादी खानदान के ही एक लड़के से तय कर दी जो दुबई में काम करता था उम्र में 9 साल बड़ा।
घर मे सब खुश थे कि लड़की दुबई जायेगी। शादी हुई 20 दिन बाद लड़का दुबई चला गया। लड़की गर्भवती हो गई थी। लेकिन पति को खबर सुनाने पर वो भड़क गया और बच्चा गिराने को कहा । बोला “बच्चे से खूबसूरती खत्म हो जायेगी और यदि वो सुंदर ना दिखी तो वो उसे तलाक़ दे देगा।”
लेकिन लड़की ने बच्चा नही गिराया। लड़का बेटा होने पर भी ना तो आया ना ही बात की । फिर एक दिन whats app पर मैसेज आया कि मैंने तुम्हें तलाक़ दे दिया है। लड़के के माँ बाप भी ज़िम्मेदारी लेने से मुकर गये। लड़की ज्यादा पढ़ी लिखी नही थी घर मे वैसे ही किल्लत थी । भविष्य अंधकारमय था। लेकिन ना कौम का ना समाज का… एक भी व्यक्ति नही बोला कि ये गलत है!! कोई सुपर स्टार कोई मज़हबी नेता कोई कौम का ठेकेदार TV पर नही बोला कि “ये गलत हुआ। लड़के को सज़ा मिलनी चाहिये।”
अगर बोलते हैं तो दूसरे समाज के वो लोग,जो औरत का दर्द समझते हैं और जहां विवाह के साथ मान्यताएं जुड़ी हैं।
★औरत की उम्र 44 साल, पढ़ी लिखी, बड़ी कंपनी में काम करती थी 3 बच्चे थे। ज़िन्दगी बढ़िया चल रही थी। हाई क्लास लाइफ स्टाइल बच्चे अच्छे स्कूलों में सब कुछ ठीक ठाक।
फिर एक दिन शौहर विदेश के दौरे पर गया। रात को एक कॉल आया कि “बहुत दिन से बताना चाहता था कि, रिश्ते की एक बहन से संबंध चल रहा था अब नौबत ये है क़ि शादी करनी पड़ेगी इसलिये मज़बूरी में मैँ तुम्हे तलाक़ दे रहा हूँ। ”
एक फ़ोन कॉल, 3 शब्द और …!! 23 साल का रिश्ता खत्म,सारी ज़िम्मेदारियाँ खत्म, सारे जज़्बात खत्म, सब कुछ खत्म।
44 साल की उम्र 3 बच्चे ,नौकरी ,और हारा हुआ मन।
जिस दीवार पर घर खड़ा किया था अचानक वो नीचे से सरक गई। किसी ने उस आदमी को समाज से बॉयकॉट नही किया।किसी ने भर्त्सना नही की। निकट रिश्तेदारों ने भी दो चार दिन गालियां दी और फिर औरत को उसके हाल पर छोड़कर अपने अपने घर चले गये।
अब भी ना तो समाज बोला ना ही कौम,
शब्दों के पत्थर से हो गया रिश्ता खत्म!!
★महिला की उम्र 55 बरस,भीषण डिप्रेशन का शिकार तीन बड़ी बड़ी लड़कियाँ, 2 नाती, पति का व्यापार।
एक दिन रात को जब वो शौहर मियां के सर में मालिश कर रही थी तो उनके ऊपर जैसे बम गिरा। शौहर ने कहा,”अब तुम इतनी अच्छी नही लगती। मोटी तो हो ही गयी हो साथ ही झुर्रियां भी पड़ रही हैं ऐसी हालत में वो उनके साथ नही रह सकते।”
आखिर को मर्द है उसे एकदम टिप टॉप जवान दिखने वाली बीबी चाहिये
मोबाइल के whats app में बहुत सी जवान लड़कियों से रात को जब चैट करते थे तो ढलती उम्र वाली बीबी रात को अल्लाहमिया से उनके उम्रदराज़ होने की दुआ मांगकर सोती थी। 55 साल की उम्र में अचानक जवान औरतों की चाहत में खुद बुढापे के शिकार होते शौहर ने उन्हें तलाक़ का पत्थर मार कर घर से निकाल दिया।
बीबी को समझ नही आ रहा था क़ि उसका कसूर क्या है? सारी जवानी उस शौहर का घर बसाने में और बच्चे पालने में निकाल दी।
क्या उसका कसूर ये है कि उसने ब्यूटी पार्लर और ब्यूटी प्रोडक्ट्स पर पैसे नही उड़ाये और पाई पाई जोड़ती रही ये सोचकर कि शौहर की मेहनत की कमाई है। आज वो डिप्रेशन की दवाइयां खाती है और लगभग नर्वस ब्रेकडाउन के कगार पर हैं।
ये कैसी इंसानियत है? ये कैसे रिश्ते हैं? जिस्मानी रिश्ते रूहानी रिश्तों से बड़े हैं? ना जाने कब वो कंधा दगा दे जाये जिस पर सर रखकर वो बीबी सोती थी।
एक को छोड़कर दूसरे को पकड़ लेने का एक आसान सा रास्ता बना हुआ है कि सबकुछ ज़ायज़ बना दो। गलत को सही करार दे दो!! क्योंकी जो रिश्ता कागज़ के कॉन्ट्रेक्ट से शुरू होता है वो जबान के वार से खत्म भी हो जाता है।
कहीं कोई जन्म जन्म का साथ देने का वादा नही!!
कहीं सात जन्मों तक साथ रहेंगे वाला करार नही!
रिश्ते जोड़ते वक़्त ही शर्तें लिख दी जाती की रिश्ता टूटने के वक़्त किसको क्या मिलेगा। कितने पैसे से इस रिश्ते के मोल को चुकाया जायेगा।
बहुत से लोगों को इस खेल से बड़े फायदे भी हैं। जहां कुछ जायज़ ना हो इसकी आड़ ले लो। कुछ समय के लिये कागज़ पर पहचान बदल लो और एक और रिश्ता कायम कर लो।
हमारे बहुत से celebraties , बड़े बड़े लोग भी इसका लाभ उठाते है क्योंकि अगर ये ना हो तो अदालत में लुट जाएंगे। जेल होगी सो अलग। अगर पहली पत्नी को छोड़ने में यदि कानून आड़े आता हो तो कुछ पलों के लिए पहचान बदल लो, दूसरा ब्याह रचा लो और सब कुछ ज़ायज़ हो जाता है।
ये एक ही समाज के लिए अलग अलग कानून क्यों?
बहुत सारी महिला सेलिब्रटी भी हैं जिन्होंने दूसरों के घर इसी प्रथा से उजाड़कर अपने घर बसायें हैं। उनमे से कुछ तो राज्यसभा ,कुछ लोकसभा तक भी पहुंची हैं और इसी लिए इस कुप्रथा बारे में नही बोलीं क्योंकी उन्होंने इसी का इस्तेमाल करके दूसरी पत्नी का दर्जा हाँसिल किया है। हमारे बड़े बड़े सुपर स्टारों ने भी इसी का इस्तेमाल करके पहली पत्नी को त्यागकर दूसरी शादी रचाई।
इस सारे खेल में मानवीय पक्ष की कोई जगह नही।
सात फेरों के वक़्त कभी ऐसी कोई शर्त नही होती जो ये दर्शाए की यदि एक नए दूसरे को छोड़ दिया तो कौन कौन सी शर्तें मान्य होंगी। यानी उसमे छोड़ने, छुड़ाने की कोई जगह ही नही है। एक बार बंधन में बंधने का मतलब जन्म जन्मांतर का साथ। तलाक जैसे शब्द का विवरण ही नही है। यदि रिश्ता तोड़ना हो तो धर्म इसकी अनुमति नही देता सिर्फ अदालत के ज़रिए ही तोड़ा जा सकता है। धर्मानुसार पतिपत्नी जीवन पर्यन्त साथी रहते हैं।
10 बच्चों को जनने वाली स्थूलकाय औरत भी जब माँग में गर्व से सिंदुर भरती है तो वो जानती है कि उसके अर्थी चढ़ने तक उसका पति इस सिंदूर की लाज रखेगा। उसे डोली में लाया है अर्थी में विदा करेगा।
कोई डर नही, कोई insecurity नही।
अग्नि के फेरे ही हर सुरक्षा की गारंटी होते हैं।
दूसरी ओर वो औरतीं जो जितना भी चाहे पति से प्यार करे, कितना सर्वस्व न्योछावर कर दे लेकिन ताउम्र एक डर में जीती है की तीन शब्दों के पत्थर उसकी तक़दीर में कांटे बिछा देंगे।
औरत ना हुई कपड़ों पर लगी गर्द हो गयी.. झाड़ा और चल दिये।
कसूर भी अजीब तरह के,जो जीते जागते रिश्ते का क़त्ल कर देते हैं ..
पंखा क्यों बन्द किया.. हलाक़!
मनपसंद खाना क्यों नही बनाया..हलाक़ !
लिपस्टिक व नेलपॉलिश क्यो लगाई..हलाक़ !
लड़की क्यों जनी…. हलाक़ !!
जवाब क्यों दिया…हलाक़!
मेरा दिल दूसरी पर आ गया… हलाक़!
मोटी क्यों हो गई … हलाक़!
रिश्तों को जोड़ने के लिए इतने आडम्बर,इतनी रस्मों रिवाज़ , कागज़ पर लिखे करार और तोड़ने को शब्द भर काफी हो जाते हैं!!
बड़ी अजीब सी बात है जख्म मज़हब दे और उसपर मरहम लगाने का काम कानून करे!!
उसपर भी इसका विरोध किया जाता है। यानी-
जो जैसे चल रहा है चलने दो।
हमे खुदगर्ज़ी से मतलब है
कोई रोता है तो रोने दो
आज अगर मैं इस बारे में सोचती हूँ तो सिर्फ और सिर्फ एक औरत होने के नाते, इंसान होने के नाते.. बाकि कुछ भी उसके बाद में आता है।
आज 21वी सदी में यदि जनसंख्या के आधे हिस्से वाली महिला वर्ग के बारे में अगर महिलाएं भी ना सोचें तो वो खुदगर्ज़ी होगी।
कोई धर्म इस बात की पैरवी नही करता कि उसके नियमों से किसी निर्दोष को चोट पहुंचे,लेकिन उसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने वालों को इस बात से कोई फर्क नही पड़ता की सीमाएं क्या हैं!!
उनके हाथ मे ये एक हथियार है जिससे जब जी चाहे किसी निर्दोष को जिबह कर सकते हैं।
हलाक़! हलाक़!हलाक़